हर किसी की घड़ी अलग होती है: अपने सही समय का इंतज़ार करें……. तरुण खटकर।
आज की प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया में हर कोई सफलता की सीढ़ी तेज़ी से चढ़ना चाहता है। और दूसरों की सफलताओं को देखकर उनसे अपनी तुलना करने लगते हैं—फ़लाँ इतनी कम उम्र में इतना आगे बढ़ गया, तो मैं क्यों नहीं? यह तुलना ही हमारे अंदर बेचैनी और असंतोष पैदा करती है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि हर किसी की घड़ी अलग होती है और हर व्यक्ति का अपना एक सही समय होता है।
जैसे एक बीज को अंकुरित होने में, एक फल को पकने में, और एक फूल को खिलने में समय लगता है, उसी तरह हर इंसान की ज़िंदगी में भी सही समय आता है। कोई जल्दी सफलता पा लेता है, तो कोई देर से। इसका मतलब यह नहीं कि जो देर से सफल हुआ, वह कम योग्य है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने 4 वर्ष की उम्र तक बोलना शुरू नहीं किया था, और 7 वर्ष की उम्र तक पढ़ना भी ठीक से नहीं आता था, लेकिन बाद में उन्होंने दुनिया बदल दी। मशहूर उपन्यासकार जे.के. रोलिंग की ‘हैरी पॉटर’ किताब कई प्रकाशकों ने अस्वीकार कर दी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज वह दुनिया की सबसे सफल लेखिकाओं में से एक हैं।
अपने “सही समय” का इंतज़ार करने का मतलब यह नहीं है कि हम निष्क्रिय होकर बैठ जाएँ। इसका मतलब है कि हम लगातार प्रयास करते रहें, अपनी क्षमताओं को निखारते रहें और धैर्य रखें। जब हमें लगता है कि हमारे प्रयास रंग नहीं ला रहे हैं, तो यह निराशा का नहीं, बल्कि सीखने और सुधार करने का समय होता है।
जीवन एक मैराथन है,….. इसमें सबसे तेज़ नहीं, बल्कि सबसे धैर्यवान और लगातार चलने वाला जीतता है। जब हम दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर देते हैं और अपनी राह पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम खुद को सफल पाते हैं।
हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारे हिस्से का सूरज ज़रूर चमकेगा, और जब वह चमकेगा, तो सबसे ज़्यादा रोशनी देगा और दुनिया जगमगा जाएगा।

संपादक सिद्धार्थ न्यूज़
