अफगानिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाकर बर्बाद करने वाले आतंकवादी तालिबान हो या मनुस्मृति आधारित हिंदुराष्ट्र के नाम पर देश को लूटने वाले आतंकवादी संघ परिवार हो दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं।
।।संपादकीय लेख – तुहीन देव 11/10/2025।।
अटल बिहारी बाजपेई के शासन काल में 26 साल पहले कन्दहार में भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री जसवंत सिंह ने तालिबान के विदेश मंत्री मुट्ठावकिल से समझौता किया था ।उद्देश्य था IC 415 एयर इंडिया फ्लाइट जिसे पाक और तालिबान समर्थित आतंकवादियों ने अगवा किया था के मुद्दे को सुलझाना।इस समझौते के आधार पर जैस ए मुहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को रिहा किया गया और पाकिस्तान भेजा गया।
उस समय भी भाजपा की सरकार थी।26 साल बाद इसी भाजपा की सरकार ने तालिबान को औपचारिक मान्यता दी है और हाल ही में दिल्ली में तालिबान के वर्तमान विदेश मंत्री अमीर खान मुस्तकी के साथ भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैठक की और समझौता हुआ।
ये तालिबान कौन है ? अफगानिस्तान में प्रगतिशील सरकार और अफगानिस्तान के प्रगतिशील ताकतों को खत्म करने के लिए अस्सी के दशक में अमरीकी साम्राज्यवाद ने पाकिस्तान के सहयोग से इस्लामिक कट्टरपंथियों को हथियारबंद करके और भलीभांति प्रशिक्षित कर तालिबान को तैयार किया। जिस तालिबान ने वामपंथी सरकार के पतन के बाद गृह युद्ध में नॉर्दर्न एलायंस को हराकर काबुल में प्रवेश किया।इसके लिए तालिबान ने नॉर्दर्न एलायंस के नेता “पंजशीर का शेर” अहमद शाह मसूद की सहित कई मुजाहिदीन नेताओं की निर्मम हत्या की।अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद सबसे पहले उन्होंने पांचवे अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह और उनके सलाहकारों को काबुल में संयुक्त राष्ट्र संघ के दूतावास से जबरन निकालकर कुत्ते की तरह मारकर लैंप पोस्ट में लटका दिया।उन्होंने देश में मौजूद संग्रहालयों,अन्य धर्मों से संबंधित तमाम स्मारक मूर्तियों को जिनमें विश्व विख्यात बामियान की बुद्ध मूर्ति जो यूनेस्को की विश्व विरासत थी भी शामिल थी,को ध्वस्त कर दिया।तालिबान ने अपने पहले कार्यकाल में( जब तक तालिबान भस्मासुर नहीं बन गया और उनके जन्मदाता अमरीकी साम्राज्यवाद उनसे नाराज नहीं हो गए ) और 15 अगस्त 2021 में अमरीका द्वारा उनको काबुल का शासन सौंपने के बाद दूसरे कार्यकाल में घोर प्रगति विरोधी,मध्य युगीन प्रतिक्रियाशील रूढ़िवादी धार्मिक कानूनों और घोर महिला विरोधी कानूनों को लागू किया।तालिबान ने बहुत क्रूर मध्ययुगीन तरीके से अपने विरोधियों,बड़ी संख्या में महिलाओं,बच्चों,इस्लाम को मानने वाले अन्य तबकों को मार डाला और इस तरह से एक प्रगतिशील शिक्षित अफगानिस्तान को पिछड़ेपन ज़हालत और बरबादी में धकेल दिया।जब तक पाकिस्तान के धार्मिक सैन्य केंद्र से इसकी गलबहियां चलती रही तब तक सब ठीक था।अब अफगान तालिबान द्वारा पैदा किए गए तहरीक ए तालिबान, जो पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी गतिविधियां कर रहा है उससे पाकिस्तान को परेशानी हो रही है। इसलिए अब पाकिस्तान के हुक्मरान और अफगानिस्तान के तालिबानी शासकों के संबंधों में खटास आ गई है।दूसरी ओर चूंकि भारत की फासिस्ट मोदी सरकार विदेश नीति के मामले में न केवल अपने पड़ोसी देशों से बल्कि दुनिया के अधिकांश देशों से अलग थलग पड़ गया है ।इसीलिए उसे पाकिस्तान को पटखनी देने के लिए एक सहयोगी की जरूरत है भले ही वह घोर धार्मिक कट्टरपंथी प्रगति विरोधी तालिबान शासक ही क्यों न हो।
तालिबान को आतंकवादी जियोनवादी इजरायल और उसके संरक्षक अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा गाज़ा को श्मशान बनाने में या मध्य पूर्व के अन्य देशों में और दुनिया भर में उसके आका अमरीकी शासकों द्वारा इस्लामोफोबिया के नाम पर शोषण, लूट या दमन से कुछ लेना देना नहीं है।इसलिए उसको भारत के घोर जन विरोधी और मुस्लिम विरोधी फासिस्ट संघ परिवार या उसके मार्गदर्शन में संचालित भाजपा सरकार से हाथ मिलाने में तो खुशी ही होगी और दूसरी ओर देखिए दुनिया के सबसे बड़े, सबसे पुराने फासीवादी संगठन RSS को भी कोई समस्या नहीं है इस्लाम का झंडा फहराकर देश को मध्य युग में ले जाने वाले तालिबान से मित्रता करने में कारण यह है कि चाहे अफगानिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाकर बर्बाद करने वाले आतंकवादी तालिबान हो या मनुस्मृति आधारित हिंदुराष्ट्र के नाम पर देश को लूटने वाले आतंकवादी संघ परिवार हो दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं।दोनों कॉरपोरेट पूंजीवादी और दुनिया की जनता के दुश्मन नंबर एक अमरीकी साम्राज्यवाद के अनुगत हैं और घोर प्रगति विरोधी,समाज विरोधी और मानवता विरोधी हैं।

संपादक सिद्धार्थ न्यूज़
