व्यक्ति की पहचान: जाति या धर्म नहीं, समर्पित भावना है।
।। तरुण खटकर की कलम से।।
मनुष्य का मूल्यांकन अक्सर उसकी जाति या धर्म के आधार पर किया जाता है, जो कि एक संकीर्ण और अनुचित दृष्टिकोण है। एक व्यक्ति की सच्ची पहचान उसकी समर्पित भावना से होनी चाहिए। यह भावना ही है जो उसके कर्मों को दिशा देती है, उसके चरित्र का निर्माण करती है और समाज में उसके योगदान को निर्धारित करती है।जाति और धर्म सामाजिक वर्गीकरण के साधन हो सकते हैं, लेकिन ये किसी व्यक्ति के आंतरिक गुणों, उसकी क्षमता और उसकी निष्ठा का पैमाना नहीं बन सकते। इतिहास गवाह है कि महान उपलब्धियां किसी विशेष जाति या धर्म से नहीं जुड़ी थीं, बल्कि उन व्यक्तियों की असाधारण समर्पण भावना का परिणाम थीं जिन्होंने अपने लक्ष्य के प्रति अदम्य निष्ठा दिखाई। चाहे वह विज्ञान, कला, समाज सेवा या कोई अन्य क्षेत्र हो, सफलता उन्हीं को मिली जिन्होंने पूरी लगन और ईमानदारी से अपना काम किया।किसी भी क्षेत्र में, चाहे वह एक किसान हो जो अपनी फसल के लिए दिन-रात मेहनत करता है, एक डॉक्टर हो जो मरीजों की सेवा में खुद को समर्पित करता है, या एक शिक्षक हो जो अपने छात्रों के भविष्य को संवारने में जुटा रहता है – इन सभी में हमें उनकी समर्पित भावना ही दिखाई देती है। यह समर्पण ही है जो उन्हें अपनी बाधाओं से ऊपर उठने और अपने काम में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
जाति या धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति का आकलन करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह समाज में भेदभाव और विभाजन को भी बढ़ावा देता है। यह हमें उन प्रतिभाओं और क्षमताओं को पहचानने से रोकता है जो समाज के लिए एक बड़ा योगदान दे सकती थीं। जब हम किसी व्यक्ति को उसकी समर्पित भावना से देखते हैं, तो हम उसकी मानवीय गरिमा का सम्मान करते हैं और उसे उसकी पूरी क्षमता को साकार करने का अवसर देते हैं।इसलिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी सोच को व्यापक करें और व्यक्तियों को उनकी जाति या धर्म के चश्मे से देखना बंद करें। हमें उनकी लगन, निष्ठा और कार्य के प्रति समर्पण को प्राथमिकता देनी चाहिए। यही दृष्टिकोण एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकता है जहां हर कोई अपनी प्रतिभा के बल पर पहचाना जाए, और जहां मानव मूल्य सबसे ऊपर हों। एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज के लिए यह एक अनिवार्य कदम है।

संपादक सिद्धार्थ न्यूज़
