छत्तीसगढ़ के 10463 स्कूलों को बंद करना केवल इमारतों को बंद करने का फैसला नहीं, बल्कि यह हजारों बच्चों के भविष्य, शिक्षकों के करियर सफाई कामगार और रसोईयों के परिवारों की रोजी-रोटी का प्रश्न है – तरुण खटकर।

।। सोशल एक्टिविस्ट तरुण खटकर ने इस लेख में युक्तियुक्तिकरण के विभिन्न पहलुओं और इसके संभावित प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया है ।।
रायपुर 28 मई 2025 । छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 27 मई 2025 को 10,463 स्कूलों को युक्तियुक्तिकरण के नाम पर बंद करने का आदेश जारी कर दिया है। यह निर्णय न केवल इन स्कूलों में पढ़ने वाले हजारों बच्चों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि प्रधान पाठक, शिक्षक, सफाई कर्मचारी और मध्याह्न भोजन के रसोइयों सहित बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी पर भी सीधा असर डालेगा युक्तियुक्तिकरण का औचित्य और वास्तविकता-
सरकार द्वारा स्कूलों के युक्तियुक्तिकरण का मुख्य कारण कम छात्र संख्या और संसाधनों का बेहतर उपयोग बताया जा रहा है। तर्क दिया जाता है कि छोटी संख्या वाले स्कूलों को बंद कर, छात्रों को पास के बड़े स्कूलों में स्थानांतरित करने से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और प्रति छात्र लागत कम होगी। हालांकि, यह तर्क कई व्यवहारिक चुनौतियों और मानवीय पहलुओं की अनदेखी करता है।बच्चों पर प्रभाव: शिक्षा का अधिकार और दूरी की चुनौती – सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव उन 10,463 स्कूलों के बच्चों पर पड़ेगा। जो ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में, जहां ये छोटे स्कूल अक्सर शिक्षा का एकमात्र माध्यम होते हैं, बच्चों को अब लंबी दूरी तय करके बड़े स्कूलों तक पहुंचना होगा। सुरक्षा का प्रश्न: विशेष रूप से छोटी बच्चियों के लिए, लंबी दूरी पैदल तय करना या असुरक्षित परिवहन साधनों का उपयोग करना सुरक्षा के लिहाज़ से चिंता का विषय होगा।
शिक्षा तक पहुंच में कमी: गरीब परिवारों के बच्चे, जिनके पास परिवहन के साधन नहीं हैं, शिक्षा से वंचित हो सकते हैं। लंबी दूरी और आने-जाने में लगने वाला समय उनकी पढ़ाई को बाधित कर सकता है भावनात्मक और सामाजिक समायोजन: एक नए स्कूल में नए साथियों और शिक्षकों के साथ सामंजस्य बिठाना छोटे बच्चों के लिए मुश्किल हो सकता है, जिससे उनकी सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होगी। ड्रॉपआउट दर में वृद्धि: उपरोक्त चुनौतियों के कारण, ऐसे बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर (ड्रॉपआउट) में वृद्धि होने की प्रबल संभावना है।
प्रधान पाठक और शिक्षकों का भविष्य: स्थानांतरण और अनिश्चितता – बंद होने वाले स्कूलों के प्रधान पाठक और शिक्षकों को अन्य स्कूलों में समायोजित किया जाएगा। हालांकि, यह समायोजन कई प्रकार की अनिश्चितताएं पैदा करता है। दूरस्थ स्थानांतरण: शिक्षकों को उनके मूल स्थान से दूर स्थानांतरित किया जाएगा जिससे उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पद का समायोजन: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि शिक्षकों को उनके पद और अनुभव के अनुसार ही समायोजित किया जाए, ताकि उनकी पदोन्नति और करियर की संभावनाएँ प्रभावित न हों।अतिरिक्त कार्यभार: बड़े स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ने से शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार आ सकता है, जिससे शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
मनोबल में कमी: अनिश्चितता और अव्यवस्था का माहौल शिक्षकों के मनोबल को गिरा सकता है, जिसका सीधा असर उनके शिक्षण पर पड़ेगा। सफाई कर्मचारी और रसोइयों की रोजी-रोटी का सीधा खतरा : यह युक्तियुक्तिकरण सफाई कर्मचारियों और मध्याह्न भोजन के रसोइयों के लिए एक सीधा खतरा है। ये कर्मचारी अक्सर स्थानीय होते हैं और उनकी आय सीधे स्कूल से जुड़ी होती है। रोजगार का नुकसान: स्कूल बंद होने का मतलब है इन कर्मचारियों का सीधा रोजगार समाप्त होना। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां रोजगार के अवसर सीमित हैं, यह उनके परिवारों के लिए एक बड़ा झटका होगा। सामाजिक सुरक्षा का अभाव: इन कर्मचारियों के पास अक्सर संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की तरह सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं होते, जिससे बेरोजगारी की स्थिति में वे और भी कमजोर हो जाते हैं। आर्थिक संकट: इनकी आय पर निर्भर परिवार अचानक आर्थिक संकट का सामना करेंगे, जिससे उनकी मूलभूत आवश्यकताएं प्रभावित होंगी।
आगे की राह: समावेशी समाधान की आवश्यकता छत्तीसगढ़ शासन को इस युक्तियुक्तिकरण के मानवीय और सामाजिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना होगा। केवल कम संख्या और संसाधनों के तर्क पर इतने बड़े पैमाने पर स्कूलों को बंद करना दूरदर्शितापूर्ण नहीं है। स्कूलों को बंद करने के बजाय, एक समावेशी और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।विकल्पों पर विचार: छोटे स्कूलों को बंद करने के बजाय, उन्हें मल्टी-ग्रेड शिक्षण या अन्य नवाचारी तरीकों से मजबूत करने के विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।परिवहन सुविधाएँ: यदि बच्चों को स्थानांतरित करना ही है, तो सरकार को सुरक्षित और मुफ्त परिवहन सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए, खासकर दूरदराज के क्षेत्रों के लिए।कर्मचारियों का पुनर्वास: सफाई कर्मचारियों और रसोइयों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसर सृजित किए जाने चाहिए या उन्हें पर्याप्त मुआवजा और प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। संवाद और पारदर्शिता: इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों, अभिभावकों और शिक्षकों के साथ पारदर्शी संवाद स्थापित किया जाना चाहिए,था ताकि उनकी चिंताओं को सुना जा सके और उनका समाधान किया जा सके।
दीर्घकालिक योजना: शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए, सुदूर क्षेत्रों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक दीर्घकालिक और समावेशी योजना बनाने की आवश्यकता है। मेरा मानना है छत्तीसगढ़ सरकार को इस निर्णय के परिणामों पर पुनर्विचार करना चाहिए और ऐसे समाधानों पर काम करना चाहिए जो शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए बच्चों, अभिभावकों, शिक्षकों,सफाई कामगार एवं रसोइयों सभी हितधारकों के हितों का भी ध्यान रखें। अन्यथा, यह निर्णय शिक्षा में सुधार के बजाय एक बड़े सामाजिक और मानवीय संकट को जन्म दे सकता है।

संपादक सिद्धार्थ न्यूज़