एटीएम से पैसे निकालने और बैलेंस देखने पर भारी भरकम चार्ज कितना जायज- तरुण खटकर।

।। सोशल एक्टिविस्ट तरुण खटकर की कलम से ।।
रायपुर 03 मई 2025 । आज के डिजिटल युग में एटीएम (ऑटोमेटेड टेलर मशीन) आम जनता के लिए नकदी निकालने और अपने खाते की शेष राशि जानने का एक महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है। शहरों से लेकर गांवों तक, एटीएम की उपलब्धता ने बैंकिंग को काफी हद तक सुगम बना दिया है। हालांकि, हाल के वर्षों में एटीएम से पैसे निकालने और यहां तक कि सिर्फ बैलेंस देखने पर भी बैंकों द्वारा लगाए जा रहे भारी भरकम शुल्क ने एक गंभीर बहस छेड़ दी है। अब 1 मई 2025 से एटीएम से पैसा निकालने पर प्रति लिमिट के बाद पैसा निकासी पर 23 रुपए का चार्ज लगेगा।
सवाल यह उठता है कि क्या यह शुल्क वास्तव में जायज है? एक तरफ, बैंकों का तर्क है कि एटीएम की स्थापना, रखरखाव, सुरक्षा और संचालन में भारी लागत आती है। इनमें मशीन की खरीद, सॉफ्टवेयर अपडेट, बिजली का खर्च, किराए, सुरक्षा गार्डों का वेतन और नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसे कई खर्चे शामिल हैं। इसके अलावा, जब किसी अन्य बैंक का ग्राहक उनके एटीएम का उपयोग करता है, तो उन्हें इंटरचेंज शुल्क भी देना होता है। बैंकों का यह भी कहना है कि मुफ्त लेनदेन की एक निश्चित सीमा प्रदान करने के बाद शुल्क लगाना आवश्यक है ताकि ग्राहक अनावश्यक रूप से एटीएम का उपयोग न करें और डिजिटल भुगतान विधियों को बढ़ावा मिले।
वहीं दूसरी ओर, आम आदमी के लिए एटीएम एक बुनियादी सुविधा है। खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, जहां डिजिटल भुगतान के विकल्प अभी भी सीमित हैं, एटीएम नकदी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण जरिया है। ऐसे में, हर निकासी या बैलेंस पूछताछ पर भारी शुल्क लगाना आम जनता पर एक अतिरिक्त बोझ डालता है। कई बार, लोगों को छोटी रकम निकालने या सिर्फ अपना बैलेंस जानने के लिए भी शुल्क देना पड़ रहा है, जो कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अन्यायपूर्ण है।यह भी ध्यान देने योग्य है कि कई विकसित देशों में एटीएम से निकासी और बैलेंस पूछताछ पर या तो बहुत कम शुल्क लिया जाता है या बिल्कुल भी नहीं लिया जाता है। ऐसे में, भारत में इस तरह के भारी शुल्क का औचित्य समझना मुश्किल हो जाता है। क्या भारतीय बैंकों की परिचालन लागत अन्य देशों की तुलना में इतनी अधिक है कि उन्हें ग्राहकों से इतना अधिक शुल्क वसूलना पड़ रहा है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
भारी भरकम शुल्क की वैधता पर विचार करते समय हमें यह भी देखना होगा कि क्या बैंक इस शुल्क के बारे में ग्राहकों को पर्याप्त रूप से सूचित करते हैं। कई बार, ग्राहकों को लेनदेन पूरा करने के बाद ही शुल्क के बारे में पता चलता है, जिससे वे ठगा हुआ महसूस करते हैं। पारदर्शिता की कमी इस मुद्दे को और भी गंभीर बना देती है तो भारी भरकम चार्ज कितना जायज है? इसका कोई सीधा और सरल उत्तर नहीं है। बैंकों को अपनी परिचालन लागत वसूलने का अधिकार है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह शुल्क आम आदमी की पहुंच के भीतर हो और बुनियादी बैंकिंग सेवाओं को महंगा न बनाए। भारत सरकार को संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जहां बैंकों की वित्तीय स्थिरता भी बनी रहे और ग्राहकों को भी सस्ती और सुलभ बैंकिंग सेवाएं मिलें। भारत सरकार और नियामक निकायों को इस मामले में हस्तक्षेप करने और बैंकों के लिए एक उचित शुल्क ढांचा निर्धारित करने पर विचार करना चाहिए।
मुफ्त लेनदेन की सीमा को तर्कसंगत बनाया जा सकता है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह सीमा आम आदमी की जरूरतों को पूरा करे। इसके अलावा, बैंकों को शुल्क के बारे में पूरी पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए ताकि ग्राहकों को किसी भी अप्रत्याशित लागत का सामना न करना पड़े। अंततः, एटीएम से पैसे निकालने और बैलेंस देखने पर भारी भरकम शुल्क की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या यह शुल्क बैंकों की वास्तविक लागत के अनुरूप है और क्या यह आम आदमी के लिए वहनीय है। यदि शुल्क मनमाना और अत्यधिक है, तो इसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। यह आवश्यक है कि भारत सरकार ,बैंक और नियामक मिलकर एक ऐसा समाधान निकालें जो दोनों पक्षों के लिए न्यायसंगत हो।

संपादक सिद्धार्थ न्यूज़